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Poverty is a choice, poverty is a mindset. Poverty is curse, poverty ia an opportunity

 Y ou accept it easily what it comes to your way easily and poverty becomes your choice, your destiny. You accept it and it becomes your fate. You think it exists for everyone, yes it is for everyone. it never goes away now you start adjusting, compromising with all what you have at present and by doing so it becomes your mindset, then habit then your fate and then your lifestyle- a lifestyle of living in poverty.  living there entire life in comfort zone doing all what you can't do easily without challenging yourself and your situation, without shaking hands with discipline, new learning, new skills is curse. either you choose to fight with poverty and win over it or live with it compromising and adjusting throughout the life.  accept the pain for few years or complete the painful journey throughout the life with your entire family.  poverty will kill you not every single day but every single moment.  Choice How: Desicision How: Mindset How: Curse how: Opportunity how: No instant

Legacy of casteism must be continued- नीच जात कौन?

जातिवाद का अंत असंभव-जाति प्रथा मानव कल्याण

जातिवाद था और जातिवाद सदियों तक रहेगा भी। जातिवाद का अंत असंभव है। आइए जानते हैं कैसे।

(Dear readers, kindly translate the article in your respective mother tongue from the side column.

सदियों से यह बात चला रहा है कि 4 तरह के जात होते हैं पहला ब्राह्मण क्षत्रिय शूद्र और वैश्य पर क्या यह सच बात है और अगर है तो किस आधार पर जांच को नीच कहा गया है इसी बात को आज हम समझेगें।

जाति का तात्पर्य यह है कि आपकी मानसिकता कैसी है आप किस तरह के कार्य को करते हैं किस तरह का सोच रखते हैं इसका आपके समुदाय या जन्म से कोई लेना देना नहीं है।

क्यू मैंगो फॉरेस्ट रिसोर्ट ट्रैकिंग

आइए नीच जात के कुछ उदाहरण को देखें-

अगर आप बेवजह जीवन में संकोच और भय रखते हैं तो आप नीच जाती के हैं।

अगर आप अपने जीवन के मार्ग पर चलने का साहस नहीं रहते हैं तो आप नीच जाति के हैं।

अगर आपके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं है और आप किसी भी काम को अधूरा छोड़ देते हैं तो आप नीच जाति के हैं।

नीच जाति के लोग सोच की दृष्टि से जीवन को देखते हैं परंतु उच्च जाति के लोग कार्य की दृष्टि से जीवन को देखते हैं।

अगर आप घर परिवार की जिम्मेदारी के साथ समाज, देश और विश्व कल्याण की खातिर कदम नहीं उठाते हैं तो आप नीच जाति के हैं। भले ही आप एक ही परिवार से क्यों न नाता रखते हों।

अगर आपको शिक्षा प्रारंभिक दिनों में नहीं मिला है और इंटरनेट और प्रौद्योगिकी के इस युग में जहां पर शिक्षा मुफ्त में उपलब्ध है, इसके बावजूद भी अगर आप खुद को शिक्षित नहीं करते हैं खुद को सशक्त बनाने के लिए तो आप नीच जाति के हैं।

अगर सीधी तरह से कहा जाए तो नीच जात वह है जिससे इस बात का ज्ञान नहीं कि उसे जिम्मेवारी लेते हुए अपने और अपने पूरे परिवार के साथ पूरे समुदाय के लिए काम करना होता है। कहने का तात्पर्य यह है की शूद्र और वैश्य में बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जहां पर लोगों की सोच बस खाने पीने और जीने की होती है। अगर कोई वहां कुछ अच्छा करने की कोशिश करता है तो उसके खुद के घर वाले चाचा मामा भाई बहन और बिरादरी वाले उसका भला कभी नहीं चाहते। संभवत वह खुद तो कुछ करते नहीं और अपनी बिरादरी से किसी को कुछ करने देते भी नहीं।नीचता यही है या इसे ही कहते हैं।

ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने जब इस बात को समझा तब इस तरह के लोगों के समुदाय को उन्होंने शूद्र और वैश्य का नाम दिया।

और अगर सही मायने में देखा जाए तो अभी के जमाने में यह समाज में इस चीज को अभी भी बखूबी देखा जा सकता है। नीच जात जैसे शूद्र और वैश्य किसी ने बनाया नहीं है परंतु लोगों की मानसिकता को जब ऊंचे दर्जे के लोगों ने आंकां तब पाया कि इस तरह के समुदाय के लोगों को शुद्ध और अवश्य कहा जाना चाहिए क्योंकि इनकी मानसिकता ऐसी है कि वह तीन वक्त का खाना पीना सोना छोड़कर और कुछ सोचते नहीं दूसरी बात इस तरह के समुदाय के लोग कभी भी अपने लोगों को आगे बढ़ने नहीं देते। और बहुत से मायने में अगर देखा जाए तो इस तरह के लोग आपस में ही लड़-झगड़ कर ज्यादा तबाह होते हैं। इन्हें न मानवता की पहचान होती है और ना ही जीवन की मूल्य की। यह ना खुद की जिम्मेदारियां लेते हैं ना ही परिवार की ना ही समाज की और ना ही देश की। उच्च और श्रेष्ठ वह है जो अपने जीवन में इस तरह के हर तरह की जिम्मेवारी को सफलतापूर्वक निष्पादन करता है।

प्रकृति को देखें


इसी चीज को ध्यान में रखते हुए ऊंचे दर्जे के लोगों ने 4 तरह की जाति का निर्माण किया था। पहला वह जिनकी मानसिकता बहुत ही उच्च है -ब्राह्मण। दूसरा वह जिनकी मानसिकता उच्च नहीं है पर वह लड़ाके किस्म के हैं -क्षत्रिय। तीसरा वह जो किसी तरह का सिर्फ काम करके जीवन यापन करना चाहते हैं- शूद्र और चौथा वह जिनकी मानसिकता होती है किसी भी तरीके से, कुछ भी करके जीवन यापन कर लेना- वैश्य।

इस तरीके से अगर देखा जाए तो शुद्ध और वैश्य जाति में जन्मे हुए बच्चे जरूरी नहीं कि वह शूद्र और वैसे ही हो क्योंकि अगर उन्होंने अपनी मानसिकता पर काम किया है और अव्वल दर्जे के काम को करना चाहा है जीवन में तो वह ब्राह्मण और क्षत्रिय से भी श्रेष्ठ हो जाते हैं।

उच्च मानसिकता और जीवन में बड़े से बड़े कार्य को करने का चुनाव किसी भी बच्चे या वृद्ध मनुष्य को किसी भी नीच जाति से तुरंत अलग कर देती है। और अगर कोई ब्राह्मण या क्षत्रिय है और अपने कर्मों और सोच से मानसिकता से नीच काम करता है तो वह शूद्र और वैश्य से भी नीच बन जाता है।

ब्राह्मण क्षत्रिय सूत्र और वैश्य कोई जाति नहीं मानसिकता है और इंसान के समाज के प्रति कार्य करने के चुनाव को लेकर है। 

मनुष्य चाहे तो अपनी मानसिकता बदल कर, सोच बदल कर जीवन जो कि शेष रह गया है उसमें बड़े से बड़े कार्य को करके जातिवाद को और इसका समर्थन करने वाले को कड़ी चुनौती दे सकता है या, फिर उनके मुंह पर एक तमाचा जड़ सकता है। क्योंकि ऐसा करके आप उस उच्च जाति के इंसान को नीचा दिखा सकते हैं और जीवन को सफल बना सकते हैं। इससे आप दुनिया को बता सकते हैं की नीचता मानसिकता और कार्यों से होती है न कि समुदाय से।

नीच सोच,नीच जात

नीच मानसिकता,नीच जात

 नीच कार्य, नीच जात।।

उच्च सोच, उच्च जात

 उच्च मानसिकता, उच्च जात

 उच्च कार्य उच्च जात।।

जय हिंद, जय भारत।

Thus, Legacy of casteism must be continued...


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